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Wednesday, July 8, 2020

प्रकाश का प्रकीर्णन

माध्यम के अणु आपतित प्रकाश विकिरणों को अवशोषित करके इनको सभी दिशाओं में उतसर्जित करते है, इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है।

रैले के अनुसार जब कण का आकार प्रकाश के तरंगद्धैर्य की तुलना में बहुत छोटा होता है तो  प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता आपतित प्रकाश की तरंगद्धैर्य ("λ") की चतुर्थ घात के व्युत्क्रमानुपाती होता है
प्रकाश  के प्रकीर्णन से संबंधित कुछ प्रक्रियाएँ

आसमान का रंग नीला होना

सूर्य से पृथ्वी के वायुमंडल में आने वाला श्वेत  प्रकाश वायुमंडल में बहुत बड़ी संख्या में उपस्थित छोटे छोटे अणुओं द्वारा प्रकीर्णित होकर विभिन्न रंगो में विभक्त हो जाता है ।आसमानी रंग की तरंगद्धैर्य लाल रंग से बहुत छोटी होती है ।अतः रैले के अनुसार प्रकीर्णित हुए आसमानी रंग की तीव्रता , लाल रंग की तीव्रता से बहुत अधिक होती है ।

इसी कारण आसमान नीला दिखाई देता है ।

यदि पृथ्वी पर वायुमंडल नहीं होता तो आकाश काला दिखाई देता क्यूंकि इस स्थिति में किसी भी रंग का प्रकीर्णन नहीं होता ।

बादलों का रंग सफेद होना

बादलों में धूल के कण , पानी की बुँदे तथा बर्फ के कण उपस्थित होते है ।सूर्य से आपतित प्रकाश की तुलना में उनका आकर तरंगद्धैर्य से काफी बड़ा होता है ।इसीलिए उनमे प्रकाश का प्रकीर्णन बहुत अल्प होता है ।इसीलिए बादल द्वारा प्राप्त प्रकाश में हमे सभी रंगो के प्रकाश प्राप्त होते है जिसके कारण बादल सामान्यतः सफेद दिखाई देते है ।

सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल दिखाई देना -
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणे पृथ्वी के वायुमंडल में लम्बी दुरी तय करके
हमारी आँखों तक पहुँचती है ।वातावरण में उपस्थित कणों के कारण इसमें आसमानी रंग अत्यधिक प्रकीर्णित हो
जाता है जिससे आसमानी रंग की अनुपस्थिति तथा लाल रंग न्यूनतम प्रकीर्णित होने से लाल रंग की अधिकता होती
है ।इसी कारण सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई देता है ।
खतरे के निशान का लाल होना  –
लाल रंग का तरंगद्धैर्य अधिक होता है इसलिए लाल रंग  सभी रंगों की तुलना में  कम  प्रकीर्णित होते है जिसके
परिणामस्वरूप हमे लाल रंग दूर से ही दिखाई देता है ।
अतः खतरे का निशान सदैव लाल रंग के बनाये जाते है ।
इंद्रधनुष (rainbow)
प्रकाश के वायुमंडल में उपस्थित बूंदो द्वारा अपवर्तन तथा पूर्ण आंतरिक परावर्तन के पश्चात विक्षेपित होने से ही
इंद्रधनुष का निर्माण होता है ।
जब कोई प्रेक्षक वर्षा के बाद सूर्य की ओर पीठ करके खड़ा होता है तो वातावरण में उपस्थित जल की बूंदों पर सूर्य
के प्रकाश के गिरने के कारण इंद्रधनुष बनने की सुंदर प्रक्रिया प्रेक्षित होती है ।
कभी - कभी दो इंद्रधनुष भी देखे जाते है ।आंतरिक इंद्रधुनष को प्राथमिक इंद्रधनुष  तथा बाहरी इंद्रधनुष को
द्वितीयक इंद्रधनुष कहते है
प्राथमिक इंद्रधनुष
प्राथमिक इंद्रधनुष का सबसे भीतरी चाप बैगनी एवं बाहरी लाल होती है
यह द्वितीयक से अधिक चमकीला होता है
प्राथमिक इंद्रधनुष का निर्माण वर्षा की बूंदो पर आपतित प्रकाश के दो बार अपवर्तन और एक बार पूर्ण आंतरिक
परावर्तन के कारण होता है
प्राथमिक इंद्रधनुष के आंतरिक और बाह्य किनारे इंद्रधनुष की अक्ष के साथ क्रमशः 41° और 43° का कोण बनाते
है ।यह प्रेक्षक की आँख पर का 42° कोण बनता है ।
द्वितीयक  इंद्रधनुष
द्वितीयक  इंद्रधनुष का निर्माण वर्षा की बूंदो पर आपतित प्रकाश के दो बार अपवर्तन और दो  बार पूर्ण आंतरिक
परावर्तन के कारण होता है ।
यह प्राथमिक इंद्रधनुष से कम चमकीला होता है
द्वितीयक इंद्रधनुष का सबसे भीतरी चाप लाल एवं बाहरी बैगनी होता है ।
द्वितीयक  इंद्रधनुष के आंतरिक और बाह्य किनारे इंद्रधनुष की अक्ष के साथ क्रमशः 51° और 54° का कोण बनाते
है ।यह प्रेक्षक की आँख पर 52.5° का कोण बनता है ।