न्यूटन का कणिका सिद्धांत
v न्यूटन ने बताया कि प्रकाश छोटे , हल्के एवं प्रत्यास्थ कणो से मिलकर बना है जिन्हे कणिकाएं कहते है एवं दीप्त वस्तु से उतसर्जित होते है ।
v ये कणिकाएं प्रकाश कि चाल से सभी दिशाओं में सरल रेखा में गतिमान होती है ।
v ये कणिकाएं ऊर्जा का वहन करती है एवं नेत्र के रेटिना से टकराने पर ये वस्तु के होने का आभास कराती है ।
v विभिन्न रंगो के प्रकाश कि कणिकाओं का आकार भिन्न -भिन्न होता है ।
v कणिका सिद्धांत स्पष्ट करता है कि प्रकाश ऊर्जा एवं संवेग का वहन करता है, प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है , प्रकाश का निर्वात में संचरण होता है , प्रकाश का परावर्तन एवं अपवर्तन होता है ।
Reason Of Failure
v
कणिका सिद्धांत के अनुसार सघन माध्यम में प्रकाश की चाल
विरल माध्यम की तुलना में अधिक होती है जबकि व्यवहार में प्रकाश की चाल विरल
माध्यम में अधिक और सघन माध्यम में कम होती है ।अतः न्यूटन का कणिका सिद्धांत गलत
सिद्ध हुआ ।
v
कणिका सिद्धांत
व्यतिकरण , विवर्तन एवं ध्रुवण को व्यक्त नहीं करता ।
हाइगेन का तरंग सिद्धांत (Huygen’s Wave Theory)
इस सिद्धांत के अनुसार
v
प्रकाश तरंग के रूप में संचरित होता है ।
v
जब
प्रकाश तरंगों को स्रोत से उत्सर्जित किया जाता है, तो वे
समरूप माध्यम में समान वेग के साथ यात्रा करती हैं
v
विभिन्न
रंग प्रकाश तरंगों के विभिन्न तरंगदैर्ध्य के कारण होते हैं
v
जब
प्रकाश तरंगें हमारी आंखों में प्रवेश करती हैं, तो हमें
प्रकाश की अनुभूति होती है।
v
प्रकाश
तरंगों को अनुदैर्ध्य प्रकार की तरंगें माना जाता है
v
निर्वात
में प्रकाश के संचरण के लिए हाइगेन्स ने ईथर नामक काल्पनिक माध्यम के अस्तित्व का
सुझाव दिया ।
Drawbacks
v
हाइगेन्स ने हर जगह
ईथर की उपस्थिति का अनुमान लगाया, लेकिन प्रयोगात्मक रूप से साबित हुआ कि ऐसा
ईथर मौजूद नहीं है ।
v
हाइगेन्स
सिद्धांत विधुत प्रभाव , काम्पटन प्रभाव इत्यादि को समझाने में सफल रहा ।
v हाइगेन्स तरंग सिद्धांत प्रकाश के ध्रुवण की व्याख्या नहीं कर सकता क्यकि हाइगेन्स ने माना की प्रकाश तरंगे अनुद्धैर्य तरंगे है, जबकि प्रकाश तरंगे अनुप्रस्थ तरंगे है ।
तरंगाग्र (Wavefront)
किसी क्षण विशेष पर समान कला में कम्पन के रहे माध्यम के
कणो के बिंदु पथ को तरंगाग्र कहते है ।
प्रकाश स्त्रोत की आकृति के अनुसार तरंगाग्र तीन प्रकार के
होते है :
- गोलीय
तरंगाग्र (Spherical Wavefront)
- बेलनाकार
तरंगाग्र (Cylindrical Wavefront)
- समतल तरंगाग्र (Plane Wavefront)
गोलीय तरंगाग्र (Spherical Wavefront)
बेलनाकार तरंगाग्र (Cylindrical Wavefront)
यदि प्रकाश स्त्रोत रेखीय हो तो , रेखीय स्त्रोत से समान दुरी पर स्थित बिन्दुओ का बिन्दुपथ बेलनाकार तरंगाग्र
कहलाता है ।
समतल तरंगाग्र (Plane Wavefront)
जब प्रकाश का बिंदु स्त्रोत या रेखीय स्त्रोत बहुत अधिक दुरी पर होता है तो क्रमशः गोलीय तथा बेलनाकार तरंगाग्र का आकार बहुत बड़ा हो जाता है ।अतः इन तरंगाग्रो का छोटा सा भाग समतल तरंगाग्र माना जा सकता है ।
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का
सिद्धांत
(Huygens’ Principle of Secondary Wavelets)
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का
सिद्धांत के अनुसार
तरंगाग्र पर स्थित प्रत्येक बिंदु
नवीन विक्षोभ के स्त्रोत की भांति व्यवहार करता है जिसे द्वितीयक तरंगिका कहते है
।यदि माध्यम समांगी है तो द्वितीयक तरंगिकाये भी उसी वेग से गति करती है जिस वेग
से प्रारम्भिक तरंगाग्र गति करता है ।
किस क्षण द्वितीयक तरंगिकाओं को
अग्र दिशा में स्पर्श करती हुयी सतह नया तरंगाग्र कहलाती है ।इसे द्वितीयक
तरंगाग्र कहते है ।
तरंग सिद्धांत के आधार पर परावर्तन की व्याख्या
जब दो या दो से अधिक तरंगे माध्यम के किसी कण पर एक साथ
पहुँचती है तो उस कण का परिणामी विस्थापन तरंगो के द्वारा उतपन्न विस्थापनों के
सदिश योग के तुल्य होगा ।
महत्वपूर्ण बिंदु (Important Terms)
कला संबद्ध स्त्रोत (Coherent Sources)
ऐसे प्रकाश स्त्रोत जिनसे उत्सर्जित तरंगो के मध्य कलान्तर
का मान किसी स्थिति पर शून्य या समय के साथ नियत रहे, कला संबद्ध स्त्रोत कहलाते है ।
ऐसे दो स्वतंत्र प्रकाश स्त्रोत प्राप्त करना असम्भव है
जिनसे प्राप्त तरंगे कला संबद्ध होती है कला संबद्ध स्त्रोत प्राप्त करने की
विधियाँ
(i)
तरंगाग्र के विभाजन द्वारा
(ii)
आयाम विभाजन द्वारा
प्रकाश का व्यतिकरण (Interference of Light)
जब समान आवृति की दो तरंगे किसी माध्यम में एक ही दिशा में
गमन करती है तो उनके अध्यारोपण के कारण किसी बिंदु पर प्रकाश की तीव्रता अधिकतम
एवं किसी अन्य बिंदु पर तीव्रता न्यूनतम प्राप्त होती है , इस घटना को प्रकाश का व्यतिकरण कहते है
।
यह दो प्रकार का होता है
1. संपोषी व्यतिकरण
2. विनाशी व्यतिकरण
स्लिट S से एक तरंगाग्र चलता है । जब यह तरंगाग्र स्लिट A तथा B पर आपतित होता है तो स्लिट A तथा B नए प्रकाश स्त्रोतों की भांति कार्य करते है तथा द्वितीयक तरंगिकाये उत्पन्न करते है । रेखित चाप तरंगिकाओं के श्रृंगो तथा बिंदूबत चाप गर्तों को प्रदर्शित करते है ।
जिन स्थानों पर एक तरंगिका का श्रृंग दूसरी के श्रृंग से
अथवा एक का गर्त दूसरी के गर्त से मिलता है उन स्थानों पर तरंगिकाये एक ही कला में
होती है । अतः उन स्थानों पर परिणामी
तीव्रता तथा आयाम अधिकतम होती है ।
यह संपोषी व्यतिकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है । ऐसे बिंदुओं को डॉट (.)द्वारा दर्शाया जाता है
जिन स्थानों पर एक तरंगिका का श्रृंग दूसरी के गर्त से
मिलती है उन स्थानों पर तरंगिकाये विपरीत कला में होती है । अतः उन स्थानों पर परिणामी
तीव्रता एवं आयाम न्यूनतम होती है । ऐसे स्थानों को क्रॉस (X) से दर्शाया गया है ।
अतः पर्दे पर दीप्त तथा अदीप्त पट्टियाँ एकान्तर क्रम में
दिखाई देती है ।
अतः इस प्रयोग द्वारा यंग ने प्रकाश की तरंग प्रकृति को
प्रमाणित किया ।
यदि एकवर्णीय प्रकाश के स्थान पर श्वेत प्रकाश का उपयोग किया जाये तो व्यतिकरण
प्रतिरूप रंगीन प्राप्त होता है सभी रंगो
के लिए केंद्रीय उच्चिष्ठ उसी स्थान पर होता है अतः केंद्रीय उच्चिष्ठ श्वेत
प्राप्त होता है । बैगनी रंग का तरंगदैध्र्य न्यूनतम होती है तथा लाल रंग की
तरंगदैध्र्य अधिकतम होती है जिससे केंद्रीय श्वेत फ्रिंज के पास वाली फिंजे बैगनी
तथा दूरस्थ फ्रिंजे लाल होती है ।
लाल प्रकाश द्वारा बनी व्यतिकरण पट्टियाँ नीले प्रकाश की
व्यतिकरण पट्टियों से चौड़ी होती है ।
व्यतिकरण फ्रिंजे उत्पन्न करने की आवश्यक शर्ते
(Essential Condition for the Production Of Interference Fringes )
- दोनों
प्रकाश स्रोतों को कलासंबद्ध होना चाहिए, अर्थात
प्रकाश -स्रोतों के बीच एक निश्चित कलान्तर होना
चाहिए जो समय के साथ
अपरिवर्तित रहे ।
- प्रकाश के दोनों स्रोतों से
एक ही तरंगदैधर्य तथा आवृति की तरंगे उत्सर्जित होनी चाहिए, अर्थात स्रोतों को एकवर्णी होना चाहिए ।
- दोनों तरंगो के आयाम को
बराबर या लगभग बराबर होना चाहिए । ऐसा होने से व्यतिकरण फ्रिन्जो के बीच
विषमता बढ़ जाती है और वे स्पष्ट दिखाई देती है ।
- प्रकाश स्रोतों को संकरा
होना चाहिए ।
व्यतिकरण फ्रिंज की चौड़ाई का व्यंजक
(Expression for the Width of the Interference Fringes)
विवर्तन की घटना का प्रेक्षण सर्वप्रथम ग्रिमाल्डी ने किया
।इसका प्रयोगिक अध्धयन न्यूटन एवं यंग ने किया ।
किसी अपारदर्शी अवरोधक या द्वारक के तेज किनारो से प्रकाश
के मुड़ने तथा उसकी ज्यामितीय छाया में प्रकाश के फ़ैल जाने की घटना को प्रकाश का
विवर्तन कहते है ।
किसी तरंग का विवर्तन होने के लिए यह आवश्यक है की विवर्तक
(द्वारक या अवरोधक ) का आकार तरंग कि तरंगदैर्ध्य की कोटि का होना चाहिए ।
एक ही तरंगाग्र के विभिन्न हिस्सों में प्राप्त द्वितीयक
तरंगिकाओं के अध्यारोपण से प्राप्त घटना विवर्तन कहलाती है ।
विवर्तन के प्रकार (Types of Diffraction)
- फ्रेनल विवर्तन :
अवरोधक या द्वारक
से स्रोत तथा पर्दा निश्चित दूरी पर होते है इस प्रकार के विवर्तन को फ्रेनेल
विवर्तन कहते है ।
2. फ्राउनहोफर विवर्तन
इसमें अवरोधक या द्वारक से स्त्रोत एवं पर्दा अनंत दूरी पर होते है ।
प्रकाशिक यंत्रो की विभेदन क्षमता
(Resolving Power of Optical
Instruments)
किसी प्रकाशिक यंत्र द्वारा दो सन्निकट वस्तुओं के
प्रतिबिम्बों को अलग -अलग करने की क्षमता, संख्यात्मक माप के साथ, उस प्रकाशिक यंत्र की विभेदन क्षमता कही जाती है ।
सूक्ष्मदर्शी
सूक्ष्मदर्शी के संदर्भ में, दो रेखाओं के बीच
की वह न्यूनतम दूरी जिस पर वे ठीक अलग -अलग देखी जा सकती है, विभेदन सीमा कहलाती है एवं इसके व्युत्क्रम को विभेदन क्षमता कहते है ।
दूरदर्शी
दो वस्तुओं के बीच वह न्यूनतम कोणीय अंतराल जिस पर स्थित इन
वस्तुओं के प्रतिबिम्बों को दूरदर्शी में ठीक अलग -अलग प्राप्त किया जा सके, दूरदर्शी की विभेदन सीमा कहलाती है
।
किरण प्रकाशिकी की वैधता ( फ्रेनल दूरी )
Validity of Ray Optics ( Fresnel Distance)
एक a आकर का द्वारक अथवा झिर्री किसी समान्तर
किरण पुंज द्वारा प्रदीप्त होने पर लगभग में प्रकाश प्रदीप्त करता है । यह दीप्त
केंद्रीय उच्चिष्ठ का कोणीय आकर है ।
अतः एक दूरी z चलने में केवल विवर्तन के कारण ही विवर्तित
किरण पुंज एक चौड़ाई प्राप्त कर लेगा, जो की विवर्तन द्वारा
विस्तारण , द्वारक के आकार a के तुल्य
होगा । इससे वह दूरी z प्राप्त होती है जिसके आगे a चौड़ाई की किरण पुंज का
अपसरण सार्थक हो जाता है ।
z का मान उस दूरी को व्यक्त करता है जहाँ तक प्रकाश का सरल
रैखिक गमन मान्य होता है, अर्थात किरण प्रकाशिकी को वैध माना
जाता है । इस दूरी को फ्रेनेल दूरी कहा
जाता है ।
प्रकाश का ध्रुवण (Polarisation of Light)
प्रकाश अनुप्रस्थ विधुत चुंबकीय तरंगो के रूप में संचरण
करता है । विधुत क्षेत्र का परिमाण चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक होता
है अतः हम समान्यतः प्रकाश को विधुत क्षेत्र दोलनों के रूप में व्यक्त करते है ।
अध्रुवित प्रकाश
वह प्रकाश जिसमे तरंग संचरण की दिशा के लंबवत सभी दिशाओं
में विधुत क्षेत्र के दोलन सममित रूप से उपस्थित होते है अध्रुवित प्रकाश कहलाता
है ।दोलनों को क्षैतिज व् उध्वाधर घटको
में वियोजित किया जा सकता है ।
ध्रुवित प्रकाश
वह प्रकाश जिसमे दोलन प्रकाश संचरण की दिशा के लंबवत एक ही
रेखा में होते है ध्रुवित या समतल ध्रुवित प्रकाश कहलाते है ।
(i ) ध्रुवित प्रकाश में जिस तल में दोलन होते
है उस तल को कम्पन तल कहते है ।
(ii ) कम्पन तल के लंबवत तल को ध्रुवण तल कहते
है ।
(iii ) प्रकाश को कुछ निश्चित क्रिस्टलों जैसे
टूरमैलीन या पोलोराइडो से गुजारकर ध्रुवित किया जा सकता है ।
पोलेराइड
यह समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने की सरल युक्ति है । ये
प्रकाश के निश्चित अवशोषण के सिद्धांत पर आधारित होते है ।
यह कुनैन आइडो सल्फेट के बहुत ही छोटे- छोटे क्रिस्टलों की
एक पतली फिल्म है । इन क्रिस्टलों के
प्रकाशिक अक्ष समान्तर होते है ।
पोलेराइड केवल उन दोलनों को निर्गत करता है जो संचरण की
दिशा के समान्तर होते है ।
वह क्रिस्टल पोलेराइड जिस पर अध्रुवित प्रकाश आपतित होता है
ध्रुवक कहलाता है एवं क्रिस्टल या पोलेराइड जिस पर ध्रुवित प्रकाश आपतित होता है
विश्लेषक कहलाता है
मैलस का नियम
इस नियमानुसार, विश्लेषक से पारगमित ध्रुवित प्रकाश की
तीव्रता, ध्रुवक एवं विश्लेषक के पारगमन तलों के बीच के कोण
की कोज्या के वर्ग के समानुपाती होती
है ।
द्विवर्णता द्वारा
कुछ क्रिस्टल जैसे टूरमैलीन एवं क्यूनीन आइडोसल्फेट की
पट्टियों में ऐसा गुण पाया जाता है कि ये एक विशिष्ठ अक्ष के लंबवत आने वाले
प्रकाश के कम्पनों को अवशोषित के लेते है एवं अक्ष के समान्तर आने वाले कम्पनों को
पारगमित कर देते है। प्रकाश का यह चयनित अवशोषण द्विवर्णता कहलाता है।
द्वि- अपवर्तन द्वारा
कुछ विशेष क्रिस्टलो जैसे केल्साइट, क्वार्ट्ज़ एवं इत्यादि में आपतित अध्रुवित प्रकाश समान तीव्रता के दो लंबवत एवं ध्रुवित प्रकाश पुंजों में विभक्त हो जाता है ।
एक प्रकाश किरण साधारण किरण कहलाती है एवं स्नेल नियम का
पालन करती है। दूसरी किरण असाधारण किरण कहलाती है , यह स्नेल नियम का
पालन नहीं करती है।
निकोल प्रिज्म
निकोल प्रिज्म
केल्साइट क्रिस्टल से बना होता है, इसमें E - किरण O -किरण से
पृथक्कृत हो जाती है। O -किरण केनेडा बालसम पर्त से पूर्ण आंतरिक परावर्तित होकर काली सतह
के द्वारा अवशोषित हो जाती है।
O -किरण के लिए अपवर्तनांक E - किरण से
अधिक होता है। केनेडा बालसम का अपवर्तनांक, केल्साइट के लिए O
- किरण एवं E -किरण के लिए अपवर्तनांक के मध्य
होता है।
ध्रुवण के अनुप्रयोग
(i) ध्रुवण कोण
ज्ञात करके एवं ब्रूस्टर नियम से किसी पारदर्शी पदार्थ का अपवर्तनांक ज्ञात कर सकते
है।
(ii) इसे प्रकाश कि
चमक कम करने में उपयोग में लाया जाता है।
(iii) कैलकुलेटर एवं
घड़ियों में अक्षर एवं अंक द्रवीय क्रिस्टल में होने वाले ध्रुवण द्वारा बनाया जाता
है, इन्हे LCD (Liquid Crystal Display) कहा
जाता है।
(iv) CD प्लयेर में ध्रुवित लेज़र पुंज सुई कि भांति व्यवहार
करता है एवं कॉम्पैक्ट डिस्क से ध्वनि उत्पन्न होती है।
(v) ध्रुवित प्रकाश
का उपयोग नाभिकीय रसायनो (DNA ,RNA ) के अध्धयन में होता है।
No comments:
Post a Comment